वर्मी कम्पोस्ट केंचुए से खाद

    केंचुआ कृषकों का मित्र एवं भूमि की आंत कहा जाता है. यह सेन्द्रिय पदार्थ, ह्यूमस व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर अन्य परतों में फैलाता है इससे जमीन पोली होती है व हवा का आवागमन बढ़ जाता है, तथा जलधारण की क्षमता भी बढ़ जाती है.




    केंचुए के पेट में जो रासायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है, उससे भूमि में पाये जाने वाले नत्रजन, स्फुर, पोटाश, कैल्शियम व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है. ऐसा पाया गया है कि मिट्टी में नत्रजन 7 गुना, फास्फोरस 11 गुना और पोटाश 14 गुना बढ़ता है.

    केंचुए के पेट में मिट्टी व सेन्द्रिय पदार्थ अनेक बार अंदर बाहर आते जाते है इससे जमीन में ह्यूमस की मात्रा बढ़ती है तथा यह ह्यूमस केंचुए के माध्यम से मिट्टी में सब दूर फैलता है. इस क्रिया से जमीन प्राकृतिक रूप से तैयार हो जाती है जमीन का पीएच भी सही प्रमाण में रहता है.

    केंचुए अकेले जमीन को सुधारने एवं उत्पादकता वृद्धि में सहायक नहीं होते बल्कि इनके साथ सूक्ष्म जीवाणु, सेन्द्रिय पदार्थ, ह्यूमस इनका कार्य भी महत्वपूर्ण है. अगर किसी कारण इनकी उपलब्धता कम रहती है तो केचुएं की कार्यक्षमता में कमी आ जाती है.

    केंचुए सेन्द्रिय पदार्थ एवं मिट्टी खाने वाले जीव है जो सेप्रोफेगस वर्ग में आते है. इस वर्ग में दो प्रकार के केंचुए होते है.

  1. डेट्रीटीव्होरस
  2. जीओफेगस


    अ. डेड्रीटोव्होरस जमीन के ऊपरी सतह पर पाये जाते है. ये लाल चाकलेटी रंग, चपटी पूंछ के होते है इनका मुख्य उपयोग खाद बनाने में होता है, ये ह्यूमस फारमर केंचुए कहे जाते है.

    ब. जीओ फेगस केंचुए जमीन के अंदर पाये जाते है. ये रंगहीन सुस्त रहते है ये ह्यूमस एवं मिट्टी का मिश्रण बनाकर जमीन पोली करते है.

केंचुआ खाद की विशेषताएं-

    इस खाद में बदबू नहीं होती है तथा मक्खी मच्छर भी नहीं बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है. इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस । से। प्रतिशत, पोटाश । से 2 प्रतिशत मिलता है.

  • इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है.
  • केंचुआ पूर्णतः तैयार होने पर 21 दिन में भी खाद तैयार कर देता है.
  • प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है.
  • केंचुआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हेक्टेयर आवश्यक है.

केंचुआ खाद तैयार करने की विधि -

  • जिस कचरे से खाद तैयार की जाना है उसमें से कांच, पत्थर, धातु के टुकड़े अलग करना आवश्यक है.
  • केंचुओं को आधा अपघटित सेन्द्रिय पदार्थ खाने को दिया जाता है.
  • भूमि के ऊपर नर्सरी बेड तैयार करें, बेड की लकड़ी से हल्के से पीटकर पक्का व समतल बना लें'.
  • इस तह पर 6-7 सेमी. (2-3 इंच) मोटी बालू रेत या बजरी की तह बिछाए.
  • बालू रेत की इस तह पर 6 इंच मोटी दोमट मिट्टी की तह बिछाए. दोमट मिट्टी न मिलने पर काली मिट्टी में रॉक पावडर पत्थर की खदान का बारीक चूरा मिलाकर बिछाएं.
  • इस पर आसानी से अपघटित हो सकने वाले सेन्द्रिय पदार्थ की (नारियल की बूछ, गन्ने के पत्ते, ज्वार के डंठल एवं अन्य) दो इंच मोटी सतह बनाई जावे.
  • इसके ऊपर 2-3 इंच पकी हुई गोबर खाद डाली जावे.
  • 100 वर्गफुट नर्सरी बेड के लिए 4 से 5 हजार केंचुओं की आवश्यकता होती है. केंचुओं को पकी हुई गोबर खाद की सतह पर फैलाया जावे.
  • केंचुओं को डालने के उपरांत इसके ऊपर गोबर, पत्ती आदि की 6 से 8 इंच की सतह बनाई जावे. अब इसे मोटी टाट-पट्टी से ढांक दिया जावे.
  • झारे से टाटपट्टी पर आवश्यकतानुसार प्रतिदिन पानी छिड़कते रहे, ताकि 45 से 50 प्रतिशत नमी बनी रहे. अधिक नमी / गीलापन रहने से हवा अवरुद्ध हो जावेगी और सूक्ष्म जीवाणु तथा केंचुए कार्य नहीं कर पाएंगे और केंचुए मर भी सकते है.
  • नर्सरी बेड का तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए.
  • नर्सरी बेड में गोबर की खाद कड़क हो गई हो या ढेले बन गए हो तो इसे हाथ से तोड़ते रहना चाहिए, सप्ताह में एक बार नर्सरी बेड का कचरा ऊपर नीचे करना चाहिए.
  • 30 दिन बाद छोटे-छोटे केंचुए दिखना शुरू हो जावेंगे.
  • 31 वें दिन इस बेड पर कूड़े-कचरे की 2 इंच मोटी तह बिछाएं और उसे नम करें.
  • इसके बाद हर सप्ताह दो बार कूड़े-कचरे की तह पर तह बिछाएं, बॉयोमास की तह पर पानी छिड़क कर नम करते रहे.
  • 3-4 तह बिछाने के 2-3 दिन बाद उसे हल्के से ऊपर नीचे कर देवें और नमी बनाएं रखें.
  • 42 वें दिन बाद पानी छिड़कना बंद कर दें.
  • इस पद्धति से डेढ़ माह में खाद तैयार हो जाता है यह चाय के पाउडर जैसा दिखता है तथा इसमें मिट्टी के समान सोंधी गंध होती है. 
  • खाद निकालें तथा खाद के छोटे-छोटे ढेर बना देवे. जिससे केंचुए, खाद की निचली सतह में रह जावे.
  • खाद हाथ से अलग करे. गैती, कुदाली, खुरपी आदि का प्रयोग न करें.
  • केंचुए पर्याप्त बढ़ गए होंगे आधे केंचुओं से पुनः वही प्रक्रिया दोहरायें और शेष आधे से नया नर्सरी बेड बनाकर खाद बनाएं.

    इस प्रकार हर 50-60 दिन बाद केंचुए की संख्या के अनुसार एक दो नये बेड बनाए जा सकते हैं और खाद आवश्यक मात्रा में बनाया जा सकता है.

  • नर्सरी को तेज धूप एवं वर्षा से बचाने के लिए घास-फूस का शेड बनाना आवश्यक है.

6. केंचुआ एवं केचुए खाद का उपयोग - 

मिट्टी की दृष्टि से -

  • केंचुए से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है.
  • भूमि की जलधारण क्षमता बढ़ती है.
  • भूमि का उपयुक्त तापक्रम बनाये रखने में सहायक.
  • भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा. अतः सिंचाई जल की बचत होगी.
  • केंचुए नीचे की मिट्टी ऊपर लाकर उसे उत्तम प्रकार की बनाते है.
  • केंचुआ खाद में ह्यूमस भरपूर मात्रा में होने से नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश एवं अन्य सूक्ष्म द्रव्य पौधों को भरपूर मात्रा में व जल्दी उपलब्ध होते है.
  • भूमि में उपयोगी जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है.

कृषकों की दृष्टि से लाभ -

  • भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होती है.
  • सिंचाई के अंतराल में वृद्धि होती है.
  • रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने के साथ काश्त लागत में कमी आती है.

पर्यावरण की दृष्टि से-

  • भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है.
  • मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है.
  • कचरे का उपयोग खाद बनाने में होने से बीमारियों में कमी होती है.

अन्य उपयोग

  • केंचुए से प्राप्त कीमती अमीनों एसिड्स एवं एनजाइम्स से दवाएं तैयार की जाती है.
  • पक्षी, पालतू जानवर, मुर्गियां तथा मछलियों के लिए केंचुए का उपयोग खाद्य सामग्री के रूप में किया जाता है.
  • आयुर्वेदिक औषधियां तैयार करने में इसका उपयोग होता है.
  • पावडर, लिपिस्टिक, मलहम इस तरह के कीमती प्रसाधन तैयार करने हेतु केंचुए का उपयोग होता है.
  • केंचुए के सूखे पाउडर में 60 से 65 प्रतिशत प्रोटीन होता है. जिसका उपयोग खाने में किया जाता है.

केंचुआ खाद उपयोग की सावधानियां-

  • जमीन में केंचुआ खाद का उपयोग करने के बाद रासायनिक खाद व कीटनाशक दवा का उपयोग न करें.
  • केंचुओं को नियमित अच्छी किस्म का सेन्द्रिय पदार्थ देते रहना चाहिए.
  • उचित मात्रा में भोजन एवं नमी मिलने से केंचुए क्रियाशील रहते है.

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