संदेश

'V' टाइप नर्सरी एवं प्रत्यारोपण उत्पादन

चित्र
     ज्यादातर सब्जी फसलों की सफल पौध तैयार करने के लिए पारंपरिक तरीके से खुले में नर्सरी बैड तैयार किए जाते हैं। हाइब्रिड बीज होने की बजह से सब्जियों के बीज अधिक महंगे होते हैं इसलिए स्वस्थ नर्सरी प्रत्यारोपण का सफल उत्पादन विभिन्न प्रकार के ग्रीनहाउस में मुख्य रूप से प्लग ट्रे में प्रत्यारोपण करते हैं। इस प्रणाली में बीज को प्रत्येक सेल में उगाया जाता है। इसलिए पौधे एक समान रूप से बढ़ते हैं। मिश्रण और मृदा को स्टरलाइज करने, मीडिया भरने, एवं पौधों को लगाने के लिए कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है। v type nursery  के लाभ एक समान अंकुरण की प्राप्ति। रोग रहित पौध की प्राप्ति। विसंक्रमित माध्यम में बीज रोगों से मुक्त रहता है। संकर बीजों का फलोत्पद उपयोग। मिश्रण को बनाने और मिलाने में आसानी। अच्छा जल निकास और नमी बनाये रखने में सहायक। उच्च गुणवत्ता युक्त उत्पादन। ट्रे का चयन      सेल का आकार प्रत्यारोपण विशेष रूप से कार्य क्षेत्र को प्रभावित करती है। जब पौधों को बड़ी सेल में उगाया जाता है तो इसमें परिपक्व प्रत्यारोपण में जडों के बिना टूटे उत्पादन सम्भव है। सामान्य ट्रे में पौधे बड़े ट्रे से प

धान रोपाई यंत्र

चित्र
  धान मध्यप्रदेश की प्रमुख खरीफ की फसल है जिसका हमारे प्रदेश में औसत उत्पादन राष्ट्रीय औसत से कम है। वर्तमान धान को बोने और लगाने की बहुत विधियों जैसे श्री पद्धति, रोपाई पद्धति, सीधी बुवाई पद्धति आदि है। जो बहुत समय से की जा रही है। रोपाई पद्धति में श्रमिकों की कमी होने के कारण यांत्रिक विधि की उपयोगिता बढ़ जाती है। एवं वर्तमान में यह लागत को कम करने वाला सिद्ध हुआ है। जिसका विवरण निम्नानुसार है। नर्सरी की तैयारी:- 01. अंकुरित बीज 1-2 दिन 02. बीज की मात्रा 18-20 किग्रा. प्रति एकड़ 03. पॉलीथीन सीट : 20 मीटर लंबाई X 1 मीटर चौड़ाई 04. आयताकार फ्रेम : 1 मीटर लंबाई X 1 मीटर चौड़ाई X 2 इंच ऊँचाई (6 ब्लॉक) 05. मिट्टी छनी हुई 10 बोरी 06. गोबर खाद : 2 बोरी विधि - सर्वप्रथम पॉलीथीन शीट को समतल खेत में बिछाया जाता है बिछाने के पश्चात छनी हुई मृदा एवं गोबर खाद का मिश्रण तैयार किया जाता है। तैयार मिश्रण को नमीयुक्त करने के पश्चात फ्रेम को पॉलीथीन शीट पर रखा जाता है। एवं तैयार मिश्रण को फ्रेम में डाला जाता है। एवं फिर अंकुरित बीज को फ्रेम पर डाला जाता है। इस प्रकार औसतन प्रति वर्ग मीटर 120 ग्राम बीज

मल्चिंग (पलवार) एवं जल संरक्षण

चित्र
     मल्चिंग (पलवार) - मृदा एवं जल संरक्षण के लिए पौधे के चारों ओर की मिट्टी को फसल अवशेष, भूसा, प्लास्टिक शीट से ढकने की प्रकिया को मल्चिंग कहते हैं। मल्चिंग का मुख्य उद्देश्य मृदा की सतह को वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से होने वाली नमी की क्षति को कम करना, खरपतवारों की वृद्धि को अवरोधित करना एवं फसल को दिये जाने वाले खाद व पोषक तत्वों की पूर्ण उपलब्धता पौधों के लिए सुनिश्चित करना है। प्लास्टिक मल्चिंग के लाभ मृदा कटाव से सुरक्षा । नमी संरक्षण में सहायक। मृदा के तापमान को बनाए रखने में सहायक। जड़ों के विकास में सुधार। फसलों की उत्पादकता में बढोत्तरी। साफ-सुथरा खेत दिखाई देता है। अच्छी मल्च के गुण आसानी से उपलब्ध होने वाली हो। लचीली और आसानी से फैलने वाली हो। यह पौधों के हानिकारक नहीं होनी चाहिए। प्रकाश और मापमान का कुचालक होती है। मल्च के प्रकार 1. कार्बनिक मल्च - घास की कर्तन, पुआल, सूखी घास, पत्तियों, एवं कम्पोस्ट आदि। कार्बनिक मल्च लाभ मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ता है। मिट्टी की सभी संरचनाओं में सुधार करती है मिट्टी को मुलायम बनाता है जिससे मिट्टी में पानी का रिसाव और जल धारण क्षमता

बायोगैस स्लरी

चित्र
       बायोगैस संयंत्र में गोबर की पाचन क्रिया के बाद 25% ठोस पदार्थ का रूपांतर गैस के रूप में होता है और 75% ठोस पदार्थ का रूपांतर खाद के रूप में होता है. 2 घन मीटर के गैस संयंत्र में जिसमें करीब 50 किलो गोबर रोज या 18.25 टन गोबर एक वर्ष में डाला जाता है उस गोबर से 80% नमीयुक्त करीब 10 टन बायोगैस स्लरी का खाद प्राप्त होता है.      यह खेती के लिए अति उत्तम खाद होता है इसमें नाइट्रोजन 1.5 से 2%, फास्फोरस 1.0% एवं पोटाश 1.0% तक होता है. बायोगैस संयंत्र से जब स्लरी के रूप में खाद बाहर आता है तब जितना नाइट्रोजन गोबर में होता है उतना ही नाइट्रोजन स्लरी में भी होता है, परंतु संयंत्र में पाचन क्रिया के दौरान कार्बन का रूपांतरण गैस में होने से कार्बन का प्रमाण कम होने से कार्बन नाइट्रोजन अनुपात कम हो जाता है व इससे नाइट्रोजन का प्रमाण बढ़ा हुआ प्रतीत होता है.                                               बायोगैस संयंत्र से निकली पतली स्लरी में 20% नाइट्रोजन अमो. निकल नाइट्रोजन के रूप में होता है अतः यदि इसका तुरंत उपयोग खेत में नालियां बनाकर अथवा सिंचाई के पानी में मिलाकर खेत में छोड़कर दिया ज

वर्मी कम्पोस्ट केंचुए से खाद

चित्र
     केंचुआ कृषकों का मित्र एवं भूमि की आंत कहा जाता है. यह सेन्द्रिय पदार्थ, ह्यूमस व मिट्टी को एकसार करके जमीन के अंदर अन्य परतों में फैलाता है इससे जमीन पोली होती है व हवा का आवागमन बढ़ जाता है, तथा जलधारण की क्षमता भी बढ़ जाती है.      केंचुए के पेट में जो रासायनिक क्रिया व सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया होती है, उससे भूमि में पाये जाने वाले नत्रजन, स्फुर, पोटाश, कैल्शियम व अन्य सूक्ष्म तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है. ऐसा पाया गया है कि मिट्टी में नत्रजन 7 गुना, फास्फोरस 11 गुना और पोटाश 14 गुना बढ़ता है.      केंचुए के पेट में मिट्टी व सेन्द्रिय पदार्थ अनेक बार अंदर बाहर आते जाते है इससे जमीन में ह्यूमस की मात्रा बढ़ती है तथा यह ह्यूमस केंचुए के माध्यम से मिट्टी में सब दूर फैलता है. इस क्रिया से जमीन प्राकृतिक रूप से तैयार हो जाती है जमीन का पीएच भी सही प्रमाण में रहता है.      केंचुए अकेले जमीन को सुधारने एवं उत्पादकता वृद्धि में सहायक नहीं होते बल्कि इनके साथ सूक्ष्म जीवाणु, सेन्द्रिय पदार्थ, ह्यूमस इनका कार्य भी महत्वपूर्ण है. अगर किसी कारण इनकी उपलब्धता कम रहती है तो केचुएं की कार्यक

नाडेप कम्पोस्ट विधि

चित्र
       यह विधि ग्राम पुसर, जिला यवतमाल महाराष्ट्र के नारायण देवराव पण्ढरी पांडे द्वारा विकसित की गई है. इसलिए इसे नाडेप विधि कहते है. नाडेप कम्पोस्ट विधि की विशेषता यह है कि इस प्रकिया में जमीन पर टांका बनाया जाता है. इस विधि में कम से कम गोबर का उपयोग करके अधिक मात्रा में अच्छी खाद तैयार की जा सकती है. टांके को भरने के लिए गोबर कचरा (बायोमास) और बारीक छनी हुई मिट्टी की आवश्यकता रहती है. जीवांश को 90 से 120 दिन पकाने में वायु संचार प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है. इसके द्वारा उत्पादित की गई खाद में प्रमुख रूप से 0.5 से 1.5 नत्रजन, 0.5 से 0.9 स्फुर एवं 1.2 से 1.4 प्रतिशत पोटाश के अलावा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व भी पाये जाते है. नाडेप तीन प्रकार के बनाये जाते है. पक्के नाडेप      पक्के नाडेप ईंटों के द्वारा बनाये जाते हे. नाडेप टांके का आकार 10 फीट लंबा 6 फीट चौड़ा ओर 3 फीट ऊंचा अथवा 12 फीट लंबा, 5 फीट चौड़ा और 3 फीट ऊंचा भी अनुशंसित है. उक्त ओकार का एक ले आउट बनाकर ईंटों को जोड़कर टांका बनाया जावे. ईंटों को जोड़ते समय तीसरे, छठवें और नवें रहे में मधुमक्खी के छत्ते के समान 6-7 इंच के ब्लाक/

मधुमक्खी पालन

चित्र
   मधुमक्खी पालन एक लघु उद्योग है जिसमे हमें बहुगुणीय शहद एवं मोम प्राप्त होता है। इसके साथ-साथ मधुमक्खी का कृषि उत्पादन बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि अधिकतर फसलों पर परागण की क्रिया में भी यह सहायक है। अतः यह कीट किसानो का सच्चा मित्र है यही कारण है कि मधुमक्खी पालन धीरे-धीरे कुटीर उद्योग का रूप धारण कर रहा है। उद्योग शुरू करने एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये मधुमक्खी पालक को निम्नांकित बातो का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। जगह का चुनावः   मधुमक्खी पालन की जगह समतल एवं ऐसी हो जहाँ ताजा हवा पानी, छाया तथा धूप हो इसके अलावा आस-पास पानी का जमाव, भारी वाहनो के आने-जाने के लिये सड़क या आबादी नहीं होना चाहिये। मधु का प्राकृतिक स्त्रोतः   कुछ पौधे ऐसे होते है जो सिर्फ पुष्प रस प्रदान करते है, कुछ ऐसे रहते है जो सिर्फ पराग प्रदान करते हैं, मधुमक्खी प्रायः उसी फूलों पर जाती है जो पराग तथा पुष्प रस दोनों प्रदान करते है। अतः पराग स्त्रोत पर कीटनाशक दवाओं का छिड़काव नहीं होना चाहिये। जिनकी सूची निम्नानुसार है- फलदार एवं जंगली वृक्षः अमरूद, आम केला. नीबू वर्गीय फल बेर इगली जाम